(3) बहर मुताकारिब मुरब्बा असलम मकसूर
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फेलुन फ़ऊल(SS ISI)एक मिसरा में एक बार , इस का वज़न और आलाप
(आहंग)
हिंदी के मात्राई छंद “छवि”के बराबर है !
छवि छंद
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ये आठ मात्राओं का एक छंद है जिस के आख़िर में “जगन”( फ़ऊल
)आता है
(SS ISI)
(4)
बहर मुताक़ारिब मुरब्बा महजूफ़
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फऊलुन फ़अल (ISS IS)एक
मिसरा में एक बार . इस वज़न और आलाप(आहंग)को हिंदी के मात्राई छंद “अखण्ड”छंद
के बराबर समझा जा सकता है
अखण्ड छंद
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ये आठ मात्राओं का एक छंद है . इस में दो चौकल या एक पंचकल और
एक तिर्कल आते हैं !एक पंचकल (ISS फऊलुन)+एक तिर्कल(IS फअल)रखने से अखंड छंद का
वही वज़न और आलाप बन जाता है जो बहरमुताक़ारिब मुरब्बा महज़ूफ़ का है ! हफीज़ जालंधरी
ने इस वज़न और आहंग को भहर मुजारा मुरब्बा अखरब के 12 अक्षरी वज़न (मफऊल फाअलातुन
SSI SISS)के साथ प्रयोग कर के एक नया तजुर्बा किया है ----
( लो फिर बसंत
आई फूलों पे रंग लाई SSI SISS SSI SISS
चलो
बे दरंग ISS IS
लबे
आबे गंग ISS IS
बजे
जल तरंग ISS IS
मन पर उमंग
लाई फूलों पे रंग लाई SSI SISS SSI
SISS
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