प्रस्तुत रचना=== सरसी छंद में रची गई है ,ये एक मात्राई छंद है जिस के हरएक मिश्रा में 27 मात्राएँ होती हैं !
16 और 11 मात्राओं के बाद यती (वक्फा )होता है ! हर चरण या मिश्रा के आखिर में गरु (s) लघू (1)=(फाअ )
होना जरूरी है ! इस छंद को ( कबीर ) या (सुमन्दर) छंद भी कहते हैं !!
शब्द कहाँ से लाऊं ऐसे , जिस से हो इज़हार
छत्तीस गढ़ की धरती से है,मुझ को कितना प्यार
इन्सां से इन्सां का रिश्ता , जैसे लक्ष्मन राम
आते है सुख दुःख में यहाँ सब ,एक दूजे के काम
हिन्दू, मुस्लिम,सिख ,इसाई ,सब हैं यहाँ सर शार
शब्द कहाँ से लाऊं ऐसे , जिस से हो इज़हार
छत्तीस गढ़ की धरती से है,मुझ को कितना प्यार
राम और लछमन के चरणों की , यहाँ मिलेगी छाप
हर नारी के अंदर देखें , सीता जी को आप
छोटे बच्चों में झलके है ,लव ,कुश का किरदार
शब्द कहाँ से लाऊं ऐसे , जिस से हो इज़हार
छत्तीस गढ़ की धरती से है,मुझ को कितना प्यार
वीर नरायण की ये धरती , यहीं के सुन्दरलाल
आज़ादी के रण में जिन्होंने , ठोके अपने ताल
गूँज रही है फ़िज़ा में अब भी ,उन की वोह ललकार
शब्द कहाँ से लाऊं ऐसे , जिस से हो इज़हार
छत्तीस गढ़ की धरती से है,मुझ को कितना प्यार
गिरौध पुरीमें बरसों पहले , जन्मे थे एक पीर
जिन के तप से गाँव गाँव की ,बदल गई तस्वीर
सत्य नाम का करते रहे वोह , जीवन भर प्रचार
शब्द कहाँ से लाऊं ऐसे , जिस से हो इज़हार
छत्तीस गढ़ की धरती से है,मुझ को कितना प्यार
लोहे का उत्पादन भी है , हीरे की भी खान
बढ़ी हुई है महानदी से , छत्तीसगढ़ की शान
अपने जल से जो करती है , खेतों का सिंग्गार
शब्द कहाँ से लाऊं ऐसे , जिस से हो इज़हार
छत्तीस गढ़ की धरती से है,मुझ को कितना प्यार
सूआ, पंथी , करमा , ददरया , है इस की पहचान
खुर्मी ,ठठरी ,अरसा ,सुआरी ,यहाँ की है पकवान
जिस की खुशबू भर से टपके ,सब के मुंह से लार
शब्द कहाँ से लाऊं ऐसे , जिस से हो इज़हार
छत्तीस गढ़ की धरती से है,मुझ को कितना प्यार
कुछ हिस्से में आज है "गौहर "नक्सल वादी शोर
दहशत के साए में यहाँ की ,होती है अब भोर
मानवता की गरदन पर है ,रखी हुई तलवार
शब्द कहाँ से लाऊं ऐसे , जिस से हो इज़हार
छत्तीस गढ़ की धरती से है,मुझ को कितना प्यार
गौहर जमाली ( रायपुर )
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