Thursday 18 June 2015

दोहा गीत

हम जैसे नादान को ,देदें  इतना ज्ञान
सावन बिता जाए है ,कैसे हो कल्याण
असमंजस में जान है ,दया करो भगवान
बिन पानी के खेत में ,कैसे बोएं धान
             साधू संत भी मौन हैं ,ज्ञानी भी खामोश
             हलधर पुत्रों के अभी ,उड़े हुए हैं होश
              विज्ञानिक के पास भी ,इस का नहीं निदान
              बिन पानी के खेत में ,कैसे बोएं धान
नल कूपें नाकाम हैं ,नदियाँ भी कंगाल
नहरें भी बेआब हैं ,डैम भी हैं बदहाल
ऐसे मंज़र देख कर,चिंता करे किसान
बिन पानी के खेत में ,कैसे बोएं धान
               गंगा भी मजबूर है ,जमना भी लाचार
               बिन बारिश के खेत का ,कैसे हो उद्धार
               शासन भी चिंता करे ,ढूंढे कोई निदान
               बिन बारिश के खेत में ,कैसे बोएं धान
भगवन तेरे दुवार पर ,आए हैं दिलगीर
अपनी अपनी आँख में ,भरे हुए हैं नीर
हिरदय विदारक भाव से ,मांग रहे वरदान
बिन पानी के खेत में ,कैसे बोएं धान
             गौहर जमाली 

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