प्रस्तुत गीत भी सरसी छंद पे आधारित है - 16+11 =27
हर चरण के आखिर में गुरु लघु ( S I) होना ज़रुरी है !
गीत
बड़े दिनों में सपना देखा , हम ने कल की रात
सूखे सूखे पेड़ों पर भी ,उग आए हैं पात
महंगाई से हर तबक़े का , जीना हुआ मुहाल
मज़दूरों के बीएस में नहीं अब ,खाएं सब्ज़ी दाल
जिस ऊँचाई पर है रोटी , पहुंचे वहाँ ना हाथ
बड़े दिनों में सपना देखा , हम ने कल की रात
सूखे सूखे पेड़ों पर भी ,उग आए हैं पात
बड़ों ने सब्र का दामन छोड़ा ,बूढों ने खटवास
दुखड़ा रोने माँ भागी है , नारायण के पास
छोटे बच्चे ढूंड रहे थे , जब हांडी में भात
बड़े दिनों में सपना देखा , हम ने कल की रात
सूखे सूखे पेड़ों पर भी ,उग आए हैं पात
सपना तो सपना है भाई ,सच से कोसों दूर
आँख खुली तो देखा हम ने ,जीवन है मजबूर
गली गली में युग का रावण,करता है अब घात
बड़े दिनों में सपना देखा , हम ने कल की रात
सूखे सूखे पेड़ों पर भी ,उग आए हैं पात
हर चरण के आखिर में गुरु लघु ( S I) होना ज़रुरी है !
गीत
बड़े दिनों में सपना देखा , हम ने कल की रात
सूखे सूखे पेड़ों पर भी ,उग आए हैं पात
महंगाई से हर तबक़े का , जीना हुआ मुहाल
मज़दूरों के बीएस में नहीं अब ,खाएं सब्ज़ी दाल
जिस ऊँचाई पर है रोटी , पहुंचे वहाँ ना हाथ
बड़े दिनों में सपना देखा , हम ने कल की रात
सूखे सूखे पेड़ों पर भी ,उग आए हैं पात
बड़ों ने सब्र का दामन छोड़ा ,बूढों ने खटवास
दुखड़ा रोने माँ भागी है , नारायण के पास
छोटे बच्चे ढूंड रहे थे , जब हांडी में भात
बड़े दिनों में सपना देखा , हम ने कल की रात
सूखे सूखे पेड़ों पर भी ,उग आए हैं पात
सपना तो सपना है भाई ,सच से कोसों दूर
आँख खुली तो देखा हम ने ,जीवन है मजबूर
गली गली में युग का रावण,करता है अब घात
बड़े दिनों में सपना देखा , हम ने कल की रात
सूखे सूखे पेड़ों पर भी ,उग आए हैं पात
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