प्रस्तुत गीत ----ताटंक छंद में रचित है ! एस छंद के हर एक चरण या मिश्रा में 16 +14 =30 मात्राएँ होती हैं 16 मात्रा के बाद वक्फा (विराम )ज़रुरी है ,और हर चरण या मिश्रा के आख़िर में मगन( मफ़ऊलुन SSS )आता है, दोकल के बाद दोकल और त्रिकल के बाद त्रिकल रखने से इस छंद की गते और आहंग में रवानी पैदा हो जाती है !उदाहरन ------ऐसी रातें चंदा घूंघट,काड़े चुपके सोए हैं 16+14=30
और गिनती के चंद सितारे ,नींद में खोए खोए है 16+14=30
पेड़ और पत्ते टहनी टहनी,तारीकी में धोए हैं 16+14=30
( "मीराजी "की नज़्म)
गीत
तान सेन हूँ अपने युग का ,गीत जहाँ भी गाता हूँ
धरती पर रहमत की बूंदें ,अम्बर से बरसता हूँ
दरया में तुगयानी हो या, शोले बिछे हों राहों में
कोई भी बाधा ख़लल न डाले ,मेरे अज्म के पैरों में
राजा हूँ मैं अपने मन का , जहाँ भी चाहूँ जाता हूँ
धरती पर रहमत की बूंदें ,अम्बर से बरसता हूँ
तान सेन हूँ अपने युग का ,गीत जहाँ भी गाता हूँ .......
सावन के मौसम में धरती ,सजी धजी सी लगती है
हरयाली की ओढ़ चुनरया ,खूब भली सी लगती है
फ़स्ल उगे है जिन खेतों में ,महिमा उन की गाता हूँ
धरती पर रहमत की बूंदें ,अम्बर से बरसता हूँ
तान सेन हूँ अपने युग का ,गीत जहाँ भी गाता हूँ........ .
सौर किरण मेहमां है जब से ,धन वानों के बंगलों में
सारी उर्जा सिमट गई है ,जा कर उनके चरणों में
निर्धन की कुटया में बैठी , अन्धयारी को पाता हूँ
तान सेन हूँ अपने युग का ,गीत जहाँ भी गाता हूँ
धरती पर रहमत की बूंदें ,अम्बर से बरसता हूँ ........
गौहर जमाली (रायपुर )
तुज्ञानी --------बाढ़ ,सैलाब
ख़लल...........ख़राबी, रुकावट
अज्म........इरादा ,संकल्प
फस्ल........अनाज
और गिनती के चंद सितारे ,नींद में खोए खोए है 16+14=30
पेड़ और पत्ते टहनी टहनी,तारीकी में धोए हैं 16+14=30
( "मीराजी "की नज़्म)
गीत
तान सेन हूँ अपने युग का ,गीत जहाँ भी गाता हूँ
धरती पर रहमत की बूंदें ,अम्बर से बरसता हूँ
दरया में तुगयानी हो या, शोले बिछे हों राहों में
कोई भी बाधा ख़लल न डाले ,मेरे अज्म के पैरों में
राजा हूँ मैं अपने मन का , जहाँ भी चाहूँ जाता हूँ
धरती पर रहमत की बूंदें ,अम्बर से बरसता हूँ
तान सेन हूँ अपने युग का ,गीत जहाँ भी गाता हूँ .......
सावन के मौसम में धरती ,सजी धजी सी लगती है
हरयाली की ओढ़ चुनरया ,खूब भली सी लगती है
फ़स्ल उगे है जिन खेतों में ,महिमा उन की गाता हूँ
धरती पर रहमत की बूंदें ,अम्बर से बरसता हूँ
तान सेन हूँ अपने युग का ,गीत जहाँ भी गाता हूँ........ .
सौर किरण मेहमां है जब से ,धन वानों के बंगलों में
सारी उर्जा सिमट गई है ,जा कर उनके चरणों में
निर्धन की कुटया में बैठी , अन्धयारी को पाता हूँ
तान सेन हूँ अपने युग का ,गीत जहाँ भी गाता हूँ
धरती पर रहमत की बूंदें ,अम्बर से बरसता हूँ ........
गौहर जमाली (रायपुर )
तुज्ञानी --------बाढ़ ,सैलाब
ख़लल...........ख़राबी, रुकावट
अज्म........इरादा ,संकल्प
फस्ल........अनाज